श्री सूक्त - ऋग्वेद | Sri Suktam with Lyrics | A Vedic Hymn Addressed to Goddess Lakshmi | Sri Sukt |
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श्री सूक्तम् ( Sri Suktam )– देवी लक्ष्मी ( Lakshmi ) जी की आराधना के लिए उनको समर्पित संस्कृत में लिखा मंत्र है जिसे हम श्री सूक्त ( Sri Sukt ) या लक्ष्मी सूक्त ( Lakshmi Sukt )भी कहते है | इस पवित्र शक्तिशाली श्री सूक्त का पाठ करने से मैं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है | सभी प्रकार के दुःख और गरीबी दूर होती है | श्री सूक्त का नित्य पाठ करने से मनुष्य के जीवन में अपर सुख और संपत्ति आती है |
श्री सूक्त माँ लक्ष्मी जी को अति प्रिय है इसलिए मन में माँ लक्ष्मी जी के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते हुए इस श्री सूक्त पाठ का श्रवण करें | अधिक मंत्र, भजन और स्तोत्र के लिए हमारी श्रद्धा चैनल को सब्सक्राइब करे और बेल्ल आइकॉन अवश्य दबाइए ►http://bit.ly/2lpxNTN Artistes: Shri. Rahul Ghate Guruji (80973 21807) Shri. Amit Kulkarni Guruji (84529 61024) Song Credits Lyrics - Traditional Voice - Shri. Rahul Ghate & Shri. Amit Kulkarni Producer - Sonic Octaves Private Limited Recorded at Sonic Octaves Studio, Malad, Mumbai Our Popular Durga Mantras ► Sampurna Durga Saptshati Path - https://youtu.be/oivShijbbTU ► Devi Stuti - https://youtu.be/0-jAm-rjD9U ► Durga Bhajan - https://youtu.be/u-6gyGcN2ow ► Devi Sukt - https://youtu.be/jsX6aGg31RQ ► Devi Atharvashirsha - https://youtu.be/kXY_F-ObhEU Lyrics: || हरिः ॐ || हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्त्रजाम् । चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् । यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रबोधिनीम् । श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवीर्जुषताम् कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् । पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । तां पद्मिनीमीं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणो ॥ आदित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः । तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह । प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् किर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् । अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् । ईश्वरीगं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् मनसः काममाकूतिं वाचस्सत्यमशीमहि । पशूनां रुपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम। श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्॥ आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे। निच-देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्। सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह ॥ ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् |